🔱 धूमावती माता कौन हैं?
धूमावती माता दस महाविद्याओं में से एक हैं। वह देवी पार्वती का एक क्रोधित और विकराल रूप मानी जाती हैं। उन्हें विधवा देवी, त्याग और वैराग्य की प्रतीक, तथा तामसिक शक्ति का रूप माना जाता है। उनकी छवि एक बूढ़ी, काले वस्त्रों में लिपटी, धुएं से घिरी हुई और कौए की सवारी करती हुई स्त्री के रूप में वर्णित है।
📜 धूमावती माता की कथा:
एक पौराणिक कथा के अनुसार:
एक बार माता पार्वती को बहुत भूख लगी थी। उन्होंने भगवान शिव से भोजन मांगा, लेकिन भगवान शिव ध्यान में लीन थे और उन्होंने माता की बात नहीं सुनी। क्रोधित होकर माता ने उन्हें ही निगल लिया।
कुछ समय बाद देवताओं और ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया क्योंकि शिवजी के बिना सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। सभी देवताओं ने प्रार्थना की कि माता पार्वती शिवजी को बाहर निकालें।
माता पार्वती को भी जल्द ही अपने किए पर पछतावा हुआ और उन्होंने शिवजी को अपने भीतर से बाहर निकाला। जब भगवान शिव बाहर आए, उन्होंने पार्वती को शाप दिया कि वह अब “विधवा” के रूप में जानी जाएंगी। तभी से माता धूमावती के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।
इस रूप में माता पार्वती ने संसार को यह सिखाया कि क्रोध और अहंकार से विनाश होता है, और वैराग्य ही सच्चा मार्ग है।
🔯 धूमावती माता के स्वरूप की विशेषताएं:
स्वरूप: वृद्धा स्त्री, बिखरे बाल, फटे-पुराने वस्त्र
वाहन: कौवा (जो मृत्यु और तामसिकता का प्रतीक है)
हाथों में: झंडी, खड्ग, और त्रिशूल
धूम्र के समान शरीर, चारों ओर धुआं
🕉 धूमावती माता की पूजा कैसे करें?
धूमावती माता की पूजा विशेष रूप से अमावस्या, खासकर धूमावती जयंती (ज्येष्ठ अमावस्या) को की जाती है।
पूजा में काले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
देवी को काले तिल, सरसों का तेल, नींबू, और काले फूल चढ़ाए जाते हैं।
धूमावती मंत्र का जाप करें:
“ॐ धूं धूं धूमावत्यै स्वाहा॥”
पूजा में मौन रहकर ध्यान, साधना और आत्मनिरीक्षण पर ज़ोर दिया जाता है।
🧘♀️ धूमावती माता का महत्व:
नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती हैं।
वैराग्य, तपस्या और ज्ञान के मार्ग में सहायक हैं।
शत्रु बाधा, तांत्रिक प्रभाव और असाध्य रोगों से मुक्ति देती हैं।
📜 धूमावती माता की उत्पत्ति की कथा
धूमावती माता दस महाविद्याओं में से एक हैं। उनकी उत्पत्ति के संबंध में दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं:
माता पार्वती और भगवान शिव की कथा:
एक बार माता पार्वती को अत्यंत भूख लगी। जब भगवान शिव ने उन्हें भोजन नहीं दिया, तो क्रोधित होकर उन्होंने शिवजी को निगल लिया। शिवजी के कंठ में विष होने के कारण माता के शरीर से धुआं निकलने लगा, और उनका स्वरूप विकृत हो गया। बाद में शिवजी ने उनसे बाहर आने का आग्रह किया, और बाहर आने के बाद उन्होंने माता को शाप दिया कि वे विधवा के रूप में जानी जाएंगी। तब से वे धूमावती के नाम से पूजी जाती हैं।
सती की यज्ञ में आत्माहुति की कथा:
जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया, तो उनके जलते हुए शरीर से जो घना धुआं निकला, उसी धुएं से धूमावती देवी का जन्म हुआ। इसी कारण धूमावती माता का स्वरूप उदास, एकाकी और वैराग्य से परिपूर्ण माना जाता है।
🕉️ धूमावती माता की पूजा विधि
धूमावती माता की पूजा विशेष रूप से ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। पूजा विधि निम्नलिखित है:
स्नान और वस्त्र:
ब्रह्म मुहूर्त में जागरण कर शुद्ध स्नान करें एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें
पूजा स्थल की तैयारी:
पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और माता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
पूजन सामग्री:
जल, पुष्प, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित करें।
मंत्र जाप:
📿 रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप की विधि:
रुद्राक्ष की माला से 21, 51 अथवा 108 बार निम्नलिखित मंत्रों का श्रद्धा एवं एकाग्रता के साथ जाप करें:
ॐ धूं धूं धूमावत्यै स्वाहा॥
ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्॥
ॐ धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात॥ (धूमावती गायत्री मंत्र)
धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे। सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयी॥ (तांत्रोक्त स्तुति)
🙏 जाप करते समय मन को स्थिर रखें और धूमावती माता की दिव्य छवि का ध्यान करें। मंत्र जाप के बाद हाथ जोड़कर अपनी प्रार्थना व्यक्त करें।
गायत्री मंत्र: “ॐ धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात”
तांत्रोक्त मंत्र: “धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे। सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:।”
भोग अर्पण:
माता को सूखी रोटी पर नमक लगाकर या कचौड़ी, पकौड़ी आदि नमकीन व्यंजन अर्पित करें। माता को मीठा भोग नहीं चढ़ाया जाता।
प्रार्थना और क्षमा याचना:
पूजा के अंत में माता से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें और किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा याचना करें।
⚠️ विशेष निर्देश
धूमावती माता की पूजा सुहागन महिलाओं को नहीं करनी चाहिए।
पूजा एकांत में और श्रद्धा भाव से करनी चाहिए।
माता की पूजा से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और वैराग्य की प्राप्ति होती है।